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Hypothyroidism |हाइपोथायरायडिज्म जानकारी, आहार-व्यायाम, दवाएं और घरेलू उपचार

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थायरॉयड ग्रंथि, थारेयॉइड कार्टिलेज के नीचे, गर्दन में स्थित एक अंतःस्रावी ग्रंथि है। इस्थमस या इस्मस isthmus (थायराइड के दो हिस्सों के बीच का पुल) cricoid cartilage के नीचे स्थित होता है। थायरॉयड ग्रंथि यह कण्ट्रोल करती है की शरीर कितनी कुशलता से ऊर्जा पैदा करता है और उसका उपयोग करता है। यह शरीर में लगभग हर ऊतक और अंग (मस्तिष्क, अंडाशय, वृषण, ओवरी, प्लीहा छोड़कर) को प्रभावित करती है। यह थायरॉयड हार्मोन, ट्रायियोोडोथायरोनिनिन (टी 3) और थायरोक्सिन (टी 4) triiodothyronine (T3) and thyroxine (T4) का निर्माण करती है

टी 3 और टी -4 दोनों के संश्लेषण के लिए आयोडिन और टाइरोसिन ज़रूरी हैं। थायरॉयड ग्रंथि कैल्सीटोनिन भी पैदा करती है, जो कैल्शियम होमोस्टेसिस में भूमिका निभाता है।

हाइपोथायरायडिज्म क्या है? What is Hypothyroidism?

हाइपोथायरायडिज्म underactive thyroid एक ऐसी स्थिति है जिसमें थायरॉयड ग्रंथि से थायराइड हार्मोन थायरोक्सिन (टी4) और ट्राइयोडाओथोरोनिन (टी3) का उत्पादन सही मात्रा में नहीं होता। Hypothyroidism occurs when the thyroid is hypoactive and does not produce enough thyroid hormones। हाइपोथायरायडिज्म होने पर मेटाबोलिज्म कम हो जाता है और कम भोजन करने पर भी पीड़ित मोटापे का शिकार हो जाता है।

हाइपोथायरायडिज्म Hypothyroidism करीब 3.8-4.6% लोगों को प्रभावित करता है। विश्व स्तर पर, आयोडीन की कमी हाइपोथायरायडिज्म का सबसे आम कारण है। उन क्षेत्रों में जहां आहार में आयोडीन की मात्रा पर्याप्त है, हाइपोथायरायडिज्म हाशिमोटो थायरायराइटिस Hashimoto’s thyroiditis के कारण होता है। हाइपोथायरायडिज्म थायराइड ग्रंथि में सूजन, कुछ दवाओं, जन्मजात असामान्यताओं, या तनाव के कारण भी हो सकता है।

हाइपोथायरायडिज्म के लक्षण क्या हैं?

हाइपोथायरायडिज्म, थायराइड ग्रंथि के अन्दर समस्याओं के कारण हो सकता है जिसके कारण थायराइड हार्मोन के अपर्याप्त मात्रा में बनता है। ज्यादातर मामलों में, रोग के लक्षण कई सालों से अक्सर धीरे-धीरे विकसित होते हैं।

हाइपोथायरायडिज्म के लक्षणों में शामिल है, थकान, अवसाद, कम रक्तचाप, गर्मी और ठंड के प्रति संवेदनशीलता, पीरेस्टेसियास, ब्रेडीकार्डिया, एलडीएल-कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाना, एक्टिव हाइपोग्लाइसीमिया, कब्ज, सिरदर्द, मांसपेशियों की कमजोरी, जोड़ों की स्टिफनेस, चेहरे की सूजन, मासिक का ज्यादा आना, ऐंठन, बांझपन और बालों का झड़ना, मानसिक और शारीरिक गतिविधि का धीमा होना, चयापचय में कमी आना, गर्म-ठन्डे के प्रति ज्यादा संवेदनशीलता, त्वचा में सूखापन, भूख न लगना, छाती में दर्द, रक्ताल्पता और माहवारी में गड़बड़ी।

हाइपोथायरायडिज्म लक्षणों में शामिल हो सकते हैं:

  1. थकान Tiredness/lethargy
  2. ठण्ड के प्रति संवेदनशीलता Intolerance to cold
  3. शरीर का कम तापमान
  4. हाथ-पैर का ठण्डा होना Cold hands and feet
  5. कब्ज Constipation
  6. रूखी त्वचा Dry skin and hair, brittle nails
  7. वजन का बढ़ना Weight gain
  8. सूजा हुआ चेहरा Puffiness of the body
  9. स्वर बैठना Husky, hoarse voice
  10. मांसपेशी में कमज़ोरी
  11. रक्त कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना
  12. मांसपेशियों में दर्द, स्टिफनेस Muscle stiffness
  13. जोड़ों में दर्द, स्टिफनेस या सूजन
  14. सामान्य या अनियमित मासिक धर्म से
  15. पाचन की कमजोरी, धीमा पाचन
  16. भूख न लगना
  17. बालो का झड़ना
  18. हार्ट रेट कम होना
  19. डिप्रेशन Depression
  20. याददाश्त कम होना Memory loss
  21. भौहों के बाल झड़ना
  22. बाँझपन Impotence

क्योंकि थायराइड हार्मोन शारीरिक और मानसिक विकास को विनियमित करते है इसलिए जिन बच्चों में थायराइड हार्मोन की कमी या हाइपोथायरायडिक बच्चों में शारीरिक और मानसिक विकास धीमा हो जाता है।

हाइपोथायरायडिज्म होने के कारण क्या हैं?

शरीर में थायराइड हार्मोन की कमी के कई कारण हैं। शहरी क्षेत्रों में, आयोडीन की कमी इस रोग का एक प्रमुख कारक भी माना जा सकता है, क्योंकि इन क्षेत्रों में लोग कम नमक और आयोडीन का सेवन करते हैं।

डॉक्टरों के अनुसार, 150 माइक्रो ग्राम (150 mcg) आयोडीन का सेवन थाइरोइड के फंक्शन को नार्मल रखने के लिए ज़रूरी है। आहार में अपर्याप्त आयोडीन के कारण टी3 तथा टी4 की सिंथेसिस नहीं हो पाती, जिसके परिणामस्वरूप टीएसएच circulating TSH में असामान्य वृद्धि हो जाती है जो की थायराइड ग्रंथि के आकार में वृद्धि कर देती है जिसे गोइटर Goiter कहते हैं।

हाइपोथायरायडिज्म के अन्य कारणों में शामिल हैं, तनाव, वंशानुगत दोष, टीएसएच या थेरेट्रोपिन-रिलीज हार्मोन (टीआरएच) में कमी, मिलावटी और बैक्टीजनिक खाद्य पदार्थों की अधिक खपत (जैसे, गोभी, फूलगोभी, कसावा, मूंगफली, मीठाआलू, आदि),सेलेनियम की कमी, और भारी धातुओं और कीटनाशकों युक्त भोजन का सेवन, स्वयं-इम्यून एंटीबॉडी का विकास आदि।

तनाव को थायरॉयड के सही से काम न करने देने का एक महत्वपूर्ण कारण माना जाता है। तनाव में अधिवृक्क ग्रंथियों adrenal glands से कोर्टिसोल का उत्पादन होता है। शरीर के हर कोशिका में थाइरोइड हार्मोन और कोर्टिसोल दोनों के लिए रिसेप्टर्स मौजूद हैं। कोर्टिसोल का सामान्य स्तर शरीर में हर ऊतक के लिए आवश्यक है। बहुत ज्यादा कोर्टिसोल के कारण ऊतक, थायरॉयड हार्मोन के सिग्नल का जवाब नहीं देते और थायरॉयड रेज़िज़टेन्स thyroid resistance हो जाते हैं। यद्यपि थायरॉयड हार्मोन का स्तर सामान्य हो सकता है, लेकिन ऊतक को थायराइड सिग्नल के लिए कुशलतापूर्वक प्रतिक्रिया देने में विफल हो जाते है। TSH का स्तर बढ़ जाता है जबकि टी 4 और टी 3 नार्मल रहते हैं।

हाइपोथायरायडिज्म के मुख्य कारणों को निम्न में वर्गीकृत किया जा सकता है:

प्राथमिक (थायरॉयड विफलता) कारण:

जब थायरॉयड ग्रंथि टी 3 और टी 4 को बनाने में असमर्थ हो जाती है तो हाइपोथायरायडिज्म, Primary Hypothyroidism, कहा जाता है।  प्राइमरी हाइपोथायरायडिज्म में थायरॉयड ग्रंथि से हार्मोन ही कम बनता है और यह हाइपोथायरायडिज्म के 95% मामलों के लिए जिम्मेदार है।  प्राथमिक हाइपोथायरायडिज्म का सबसे आम कारण है:

  1. आयोडीन की कमी
  2. ऑटोइम्यून थायरॉयड रोग)
  3. ड्रग्स
  4. जन्मजात

सेकेंडरी कारण (पिट्यूटरी टीएसएच में कमी के कारण)

अन्य कारण

हाइपोथायरायडिज्म में आहार और जीवन शैली

  1. यदि वजन बढ़ रहा हो तो भी, दिन में तीन बार बहुत संतुलित लेकिन हल्का भोजन खाते रहें।
  2. चावल, उबली सब्जियां, फल और कच्ची सब्जियां खाएं।
  3. अपने आहार में पर्याप्त मात्रा में दूध लें।
  4. चावल, जौ, मूग दाल और ककड़ी का सेवन बढ़ाएं।
  5. नारियल तेल थायराइड रोगियों में शरीर चयापचय में सुधार करने में मदद करता है।
  6. गोभी, ब्रसेल्स स्प्राउट्स, ब्रोकोली, वॉटरक्रेस, शलगम horseradish और सरसों का साग, न खाएं क्योंकि वे थायराइड हार्मोन के उत्पादन को दबा देते हैं।
  7. नमकीन और खट्टे पदार्थों का सेवन न करें।
  8. भारी और खट्टे खाद्य पदार्थों से बचें।
  9. सरसों का सेवन थायरॉइड के फंक्शन को कम करता है, इसलिए सरसों का सेवन न करें।

व्यायाम: हाइपोथायरायडिज्म के उपचार में एक और महत्वपूर्ण कारक व्यायाम है। व्यायाम थायरॉयड हार्मोन को ऊतक संवेदनशीलता बढ़ाता है, और थायरॉयड ग्रंथि स्राव को उत्तेजित करता है। प्रति दिन कम से कम 15-20 मिनट व्यायाम करें जैसे की चलना, तैराकी, दौड़ना और साइकल चलाना आदि।

आसन: सर्वांग आसन Sarvangasana थायराइड ग्रंथि के लिए सबसे उपयुक्त और प्रभावी आसन है। इसको करने से थायरॉयड ग्रंथि पर दबाव पड़ता है और रक्त आपूर्ति बढ़ती है और संचलन में सुधार होता है। इसके अतिरिक्त मत्स्यसान, हलासन, सूर्य नमस्कार, पवनमुक्तासन आदि करने से भी लाभ होता है।

प्राणायाम: सबसे प्रभावी प्राणायाम है उज्जाई Ujjayi Pranayaam और जालंधर बंध Jalandhar bhanda है।

हाइपोथायरायडिज्म के लिए घरेलु उपचार क्या हैं?

त्रिकटु का सेवन करें। यहह सौंठ, काली मिर्च और पिप्पली का संयोजन है। यह आम दोष (चयापचय अपशिष्ट और विषाक्त पदार्थों), जो सभी रोग का मुख्य कारण है उसको दूर करता है। यह बेहतर पाचन में सहायता करता है और यकृत को उत्तेजित करता है। यह तासीर में गर्म है और कफ दोष के संतुलन में मदद करता है। दिन में दो बार आधे चम्मच को पानी के साथ सेवन करें।

  1. गिलोय + आंवला + गोखरू, को मिलाकर चूर्ण बनाएं और तीन ग्राम की मात्रा में लें।
  2. त्रिफला और कांचनार छाल का काढ़ा बनाकर लें।
  3. कांचनार छाल का काढ़ा 20 ml की मात्रा में शहद के साथ पीना चाहिए।
  4. पिप्पली का चूर्ण 1 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ तीन सप्ताह तक लें।

हाइपोथायरायडिज्म पर आयुर्वेदिक परिप्रेक्ष्य

आयुर्वेद में थायरॉइड ग्रंथि का कोई सीधा उल्लेख नहीं है, लेकिन गलगंड enlarged thyroid gland (galaganda) simple goiter नाम की एक बीमारी, जिसे गर्दन की सूजन की विशेषता है, अच्छी तरह से जाना जाता है। Goiter is produced by the inadequate secretion of thyroid hormones, resulting in a positive feedback of a pituitary hormone, thyrotropin (thyrotropin-stimulating hormone [TSH]), on the thyroid gland that ultimately enlarges।

आयुर्वेद के अनुसार, वात-कफ दोष और फैट के बढ़ जाने के कारण थायरॉइड ग्रंथि बढ़ जाती है। आयुर्वेदिक उपचार द्वारा में स्रोतों में रुकावट को साफ़ करने पर बल दिया जाता है जिससे थारेक्सिन का बहना ठीक से हो। उपचार द्वारा शरीर की ऊर्जा को संतुलित भी करने की कोशिश की जाती है। इसके अतिरिक्त पाचन को सही करने पर बल दिया जाता है जिससे उचित मेटाबोलिज्म सही हो।

हाइपोथायरायडिज्म के लिए आयुर्वेदिक दवाएं

आयुर्वेद में गलगंड, ग्रंथि विकार, गले में सूजन, लिम्फ नोड की सूजन आदि में कांचनार, अश्वगंधा, सहजन, वरुण, गुग्गुल, ब्राह्मी, अपामार्ग, निर्गुन्डी आदि का प्रयोग किया जाता है।

कांचनार की छाल, रूखी, हल्की, शीतल, और कफ-पित्तहर होती है। यह ग्रन्थि विकार में आंतरिक रूप से प्रमुखता से प्रयोग की जाने वाली औषधि है। यह थायरोक्सिन के उत्पादन को संतुलित करने वाली दवाई है। कांचनार गोइटर, सूजी हुई लिम्फ नोड्स, ग्रीवा एडेंटाइटिस, स्क्रॉफुलियारिया, ग्रन्थि के बढ़ जाने में आदि में आयुर्वेद में प्रयुक्त प्रमुख दवाई है।

वैज्ञानिक शोध में चूहों को 2.5 मिलीग्राम / किग्रा, की मात्रा में कांचनार की छाल को तीन सप्ताह तक दिया गया। टेस्ट ने दिखाया कि यह सीरम टी 3 और टी 4 की कंसंट्रेशन को काफी सुधार देता है।

गुग्गुलु, ट्राईओयोडोथोरोनिन (टी 3) / थायरोक्सिन (टी 4) अनुपात को बढ़ाता है। यह थायराइड फ़ंक्शन को उत्तेजित करता है। त्रिफला गुग्गुलु जिसे गंडमाला में प्रयोग करते हैं, का मुख्य घटक गुग्गुलु है।

अश्वगंधा, इम्युनोमोडालेटर और एडाप्टोजनिक जड़ी बूटी है जो कोर्टिसोल को कम करती और थायराइड हार्मोन को संतुलित करती है। पशु अध्ययनों से पता चलता है कि अश्वगंधा थायरॉयड हार्मोन को संतुलित करता है। चूहों में 20 दिवसीय अध्ययन ने दिखाया कि अश्वगंधा टी 3 और टी 4 के स्तर में वृद्धि करता है।

  1. शुद्ध गुग्गुल
  2. कांचनार गग्गुलू
  3. महायोगराज गुग्गुलु
  4. योगराज गुग्गुल
  5. पुनर्नवादी मंडुर
  6. पूननवाडी क्वाथ
  7. पुनार्नावारिष्ट
  8. अश्वगंधारिष्ट
  9. अश्वगंधा चूर्ण

अध्ययन के अनुसार लिव –52 का सेवन थायराइड हार्मोन स्राव को उत्तेजित करता है, विशेष रूप से टी3 को।

हाइपोथायरायडिज्म आजकल होने वाला एक आम विकार है। इसकी एलॉपथी में कई आधुनिक दवाएं और चिकित्सा उपलब्ध हैं लेकिन सभी का कोई न कोई साइड इफ़ेक्ट है। आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली, पारंपरिक जड़ी-बूटी उपचार, व्यायाम और प्राणायाम आदि द्वारा थायराइड ग्रंथि के सही काम करने को प्रेरित किया जा सकता है। यह उपचार काफी सुरक्षित हैं और इनका कोई साइड इफेक्ट नहीं है।

इसके अतिरिक्त, क्योंकि थायराइड से संबंधित समस्याएं शरीर के लगभग सभी प्रणालियों को प्रभावित करती हैं, इसलिए यह सलाह दी जाती है कि कुछ प्रिवेंटिव उपाय करें, जिससे थायरॉयड ग्रंथि, थायराइड हार्मोन की आवश्यक मात्रा का निर्माण करे। यदि ग्रंथि के hypofunctioning का संदेह हो तो, ग्वाइट्रोजनिक goitrogenic भोजन जैसे कि रेपसीड, गोभी, पत्ता गोभी, काले और शलजम न खाएं।

भोजन के माध्यम से 150 माइक्रोमिलीग्राम / दिन का आयोडिन सेवन सुनिश्चित करें। कम क्लोराइड और फ्लोराइड युक्त फ़िल्टर्ड पानी पियें। स्ट्रेस, जेनेटिक्स, और अत्यधिक स्टेरॉयड थेरेपी, इसके होने के रिस्क को बढ़ा सकती है।


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